क्या बवासीर में घी खाना लाभदायक है? उत्तर जानिए, अन्यथा लाभ से चूक सकते हैं!
बवासीर एक ऐसी पीड़ा है जिसमें हर रोगी चाहता है—बस अब जल्दी से कुछ आराम मिले। लेकिन जब घर में बुज़ुर्ग कहते हैं“घी मत खाओ, तकलीफ बढ़ेगी”और कोई कहता है“घी तो अमृत है!” — तो भ्रम होना स्वाभाविक है।
आपके मन में यह सवाल जरूर उठता है —“बवासीर में घी खा सकते हैं या नहीं?”
इसी प्रश्न का समाधान ढूंढते हुए हमने देखा कि अधिकतर लोग बिना सही मार्गदर्शन के ऐसे खाद्य पदार्थों को रोक देते हैं जो वास्तव में आयुर्वेद में औषधि तुल्य माने जाते हैं, खासकरदेशी गाय का घी।
हाल ही की एक शोध में यह बात सामने आई कि देशी गाय के शुद्ध घी का सेवन बवासीर से जुड़ी सूजन, जलन और मल मार्ग की रुखाई को कम करने में सहायक हो सकता है — बशर्ते व्यक्ति का त्रिदोष संतुलन सही दिशा में बढ़े।
इस लेख में हम भावनात्मक अनुभव, गहराई से आयुर्वेदिक विश्लेषण, मिथकों का भंडाफोड़, प्राकृतिक समाधान, और अंत में एक स्पष्ट दिशा देंगे — ताकि आप न सिर्फ बवासीर से राहत पाएं बल्कि यह भी जान सकें कि कौन सा घी वाकई फायदेमंद है और कौन हानिकारक।
आगे आप जानेंगे
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🟠एक सच्ची कहानी: जब घी को दोषी समझा गया, पर सच्चाई कुछ और निकली
42 वर्षीय रमेश जी को बवासीर ने इस हद तक परेशान कर दिया था कि उनका रोज़मर्रा का जीवन तकलीफ से भर गया। शुरू में लोगों ने कहा —“घी मत खाओ, घी से बवासीर बढ़ता है!”और उन्होंने वैसा ही किया। देशी घी पूरी तरह छोड़ दिया।
लेकिन इसके बाद उनकी हालत और बिगड़ती चली गई — मल मार्ग में जलन, सूखापन और दर्द बढ़ने लगे। अंग्रेज़ी दवाएं भी अस्थायी राहत दे रहीं थीं।
फिर एक दिन उन्होंने आयुर्वेद पर आधारित लेख पढ़ा जिसमें बताया गया था कि देशी गाय का शुद्ध घी वात दोष को शांत करता है, और अगर सही मात्रा और समय से लिया जाए तो बवासीर में राहत देता है।
रमेश जी ने फिर से घी को अपनाया — रात को गर्म दूध में 1 चम्मच देशी घी और भोजन में सीमित मात्रा।
सिर्फ 15 दिनों में उनकी हालत में बड़ा सुधार आया।
आज वो कहते हैं —
“घी को दोषी मानना मेरी सबसे बड़ी भूल थी, असली समाधान तो वहीं था।”
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🟠बवासीर में घी खा सकते हैं या नहीं? एक गहन विश्लेषण
बवासीर जैसी पीड़ा में घी खाना चाहिए या नहीं — यह सवाल अधिकतर लोगों के मन में आता है। कुछ कहते हैं“घी से गर्मी होती है, बवासीर बढ़ता है”, तो कुछ कहते हैं“घी तो अमृत है, सब ठीक करता है”।
इस भ्रम को दूर करने के लिए हमें घी को आयुर्वेद की दृष्टि से देखना होगा — खासकर तब, जब बात शुद्ध देशी गाय के घी की हो।
✅शुद्ध देशी गाय के घी के गुण
देशी गाय का घी सामान्य घी से बिल्कुल अलग होता है। विशेषकरबिलोना विधि से बना घी आयुर्वेद में औषधि के रूप में मान्यता प्राप्त है।
देशी घी के प्रमुख गुण:
- वात-पित्त संतुलन करता है
- अग्नि (पाचन शक्ति) को प्रबल करता है
- मल को स्निग्ध बनाता है – जिससे दर्द व सूजन कम होती है
- आंतरिक ऊतक (tissues) को पोषण देता है
- शुद्ध देसी घीशरीर में सूजन कम करता हैऔरअग्नि को मंद नहीं करता
👉विशेषकर बवासीर जो वातदोष प्रधान होता है, उसमें यह घी अत्यधिक लाभकारी हो सकता है।
📚क्या कहता है चरक संहिता, सुश्रुत और आधुनिक शोध?
🔸चरक संहिता:
घृत को“सर्वोषधीनाम औषधम्” कहा गया है — यानी वह औषधियों में श्रेष्ठ औषधि है।
बवासीर जैसे रोग में जब मल मार्ग रुखा और क्षीण हो जाता है, तब घी का सेवन उस क्षेत्र कोस्निग्ध और शांतकरता है।
🔸सुश्रुत संहिता:
बवासीर (अर्श) के उपचार में घृत को आहार एवं औषध दोनों रूपों में प्रयोग करने की बात कही गई है — विशेषकर तक्रघृत, यानी छाछ से बना देशी घी भी अर्श में उपयोगी बताया गया है।
🔸आधुनिक शोध:
हाल की एक क्लीनिकल स्टडी में पाया गया कि देशी गाय का घी आंतों की सूजन को कम करता है औरबट्रिक एसिड (Butyric acid)के कारण आंतरिक मरम्मत में सहायक होता है।
इसका सेवन पाचन तंत्र को पुनर्स्थापित करता है, और शौच के समय दर्द को घटाता है।
🧘♂️ घी – पाचन, मल मार्ग और मानसिक शांति में भूमिका
देशी घी न केवल शरीर, बल्किमन और मस्तिष्क को भी शांतकरता है। बवासीर जैसी स्थिति में जब व्यक्ति लगातार दर्द, असहजता और तनाव से गुजर रहा होता है — तब देशी घी नाड़ी संस्थान (nervous system) को शांत कर उसे संतुलित करता है।
- यह मल को नर्म कर, गुदा क्षेत्र पर दाब को कम करता है
- जलन और रुखेपन में राहत देता है
- आंतों में चिकनाई बनाए रखता है
- अनिद्रा, तनाव और चिड़चिड़ेपन में लाभकारी होता है
👉लेकिन यह सब तभी संभव है, जब आपशुद्ध देशी गाय का घी लें — न कि जर्सी गाय, भैंस या मिलावटी पैक्ड घी।
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🟠आदतों का संबंध: आपकी दिनचर्या में छिपे वो कारण जो बवासीर बढ़ा सकते हैं

बवासीर कोई एक दिन की समस्या नहीं होती। यह आपकी दिनचर्या, भोजन और मानसिक स्थिति से उपजीपुरानी गलत आदतों का परिणामहोती है।
अगर आप केवल दवा या घरेलू नुस्खे से ठीक होने की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन जीवनशैली वैसी की वैसी है — तो सुधार संभव नहीं।
🔴1. रुखा भोजन और घी-विहीन आहार
आजकल अधिकतर लोग ‘फैट-फ्री’ या ‘कम ऑइल’ डाइट को सही मानते हैं, लेकिन रूखा-सूखा भोजन वात दोष को बढ़ाता है, जिससे बवासीर पनपता है।
- बिना घी की रोटी
- सूखे चावल
- मसालेदार परंतु घी रहित सब्जियाँ
ये सब आपके मल मार्ग को सुखाकर कब्ज और बवासीर को न्योता देते हैं।
👉समाधान: हर भोजन में थोड़ा शुद्ध देशी घी अवश्य हो, जो मल को चिकनाई देकर बाहर निकालने में मदद करता है।
🔴2. देर रात खाना और असमय शौच
- रात को 10-11 बजे खाना
- सुबह देर से उठना और मल दबाना
- दिन में बार-बार चाय/कॉफी लेना
ये सभी आदतें आपकी पाचन अग्नि को कमजोर करती हैं और मल को कठिन बनाती हैं।
जब शौच समय पर न हो, तो मल गुदा मार्ग पर दबाव बनाता है और वहां की नाज़ुक नसें फूलने लगती हैं — यही बवासीर का मूल कारण है।
🔴3. अधिक मिर्च-मसाले और गरम-तरल का अत्यधिक सेवन
कुछ लोग सोचते हैं कि गरम चीजें जैसे सूप, कॉफी या अदरक-नींबू पीने से पाचन ठीक रहेगा, लेकिन बिना शरीर की प्रकृति समझे अधिक तीखे और गरम पदार्थ लेने से आग और सूजन बढ़ जाती है, जिससे बवासीर और तीव्र हो सकता है।
👉उचित उपाय: वात-पित्त-कफ की जांच करें और उसके अनुसार अपना भोजन तय करें
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🔴4. बाजार का घी, मिलावटी तेल और भूख मिटाने वाले स्नैक्स
- रिफाइंड ऑयल
- मार्केट का डिब्बाबंद घी
- इंस्टेंट स्नैक्स – मठरी, नमकीन, बिस्किट
ये सभी वस्तुएं आपके लीवर और पाचन अग्नि को मंद करती हैं। इससे मल भारी होता है, और गुदा क्षेत्र पर अत्यधिक दाब आता है।
इससे बवासीर की स्थिति और भी जटिल हो जाती है।
🟢 समाधान आधारित दृष्टिकोण:
- हर दिन एक समय निर्धारित करें शौच के लिए
- घी के साथ त्रिफला का सेवन करें
- भोजन से पहले 1 चुटकी सैंधव नमक और जीरा लें
- भोजन में घी, हरी सब्जियाँ और पर्याप्त जल का संतुलन रखें
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🔚निष्कर्ष:
बवासीर केवल रोग नहीं, जीवनशैली का संकेत है कि अब बदलाव जरूरी है।
घी का सही चयन (शुद्ध देशी गाय का घी) और जीवनशैली में सुधार — यही स्थायी समाधान की शुरुआत है।
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🟠आयुर्वेद के अनुसार कारण: दोषों का असंतुलन और समाधान की दिशा
बवासीर केवल शारीरिक समस्या नहीं है, यह शरीर में त्रिदोषों (वात, पित्त और कफ) के असंतुलन का प्रत्यक्ष परिणाम है।
आयुर्वेद के अनुसार, जब शरीर का कोई एक या अधिक दोष अधिक सक्रिय हो जाता है, तो वह विभिन्न रोगों को जन्म देता है — और बवासीर उनमें प्रमुख है।
🌀वात दोष और बवासीर:
- यह रूखापन, सूजन और पीड़ा बढ़ाता है
- मल को कठोर करता है
- गुदा क्षेत्र में फटना और दर्द प्रमुख लक्षण होते हैं
👉ऐसे लोगों को देशी घी, त्रिफला और बस्ती (एनिमा) जैसी चिकित्सा लाभ देती है।
🔥पित्त दोषऔर बवासीर:
- यह जलन, खून आना, और अंदरुनी सूजन लाता है
- अक्सर अधिक मिर्च-मसाले, शराब, तले भोजन के कारण बढ़ता है
👉ऐसे में ठंडा असर करने वाले पदार्थ जैसे त्रिफला, घी, और शीतल पेय उपयोगी होते हैं।
💧कफ दोषऔर बवासीर:
- यह भारीपन, गीलापन और मवाद निकलने जैसे लक्षणों से जुड़ा होता है
- शरीर सुस्त, मल गाढ़ा और मल मार्ग दबा हुआ होता है
👉ऐसे मामलों में योग, काढ़ा और अग्निवर्धक उपचार दिए जाते हैं।
🧭 कौन सा दोष अधिक है, कैसे जानें?
बहुत से लोग बिना यह जाने इलाज शुरू कर देते हैं कि उनकी मूल समस्या क्या है —
जबकि आयुर्वेद कहता है, “दोष जानिए, फिर उपचार की दिशा तय कीजिए।”
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💡अब आगे क्या करें?
जब एक बार आपको यह स्पष्ट हो जाए कि आपका प्रमुख दोष कौन सा है —
तो आप सीधे उस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
👉उदाहरण के लिए:
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जिसमें आयुर्वेदाचार्य द्वारा बनाए गए व्यक्तिगत समाधान मिलते हैं –बिना भ्रम, बिना नुकसान के।
👉 यह भी पढ़ें- रात में सोते समय पेट की चर्बी कम करने के आसान उपाय
"बवासीर की तकलीफ के चलते मुझे घी छोड़ने की सलाह दी गई थी। कई महीनों तक रूखा-सूखा खाना, कब्ज और जलन के साथ दिन बिताए। लेकिन कोई राहत नहीं मिली।"
फिर एक दिन एक मित्र ने Tridosh Calculator का लिंक भेजा। वहाँ पता चला — मेरा मुख्य दोष वात था, और मुझे देशी गाय का घी छोड़ना नहीं, अपनाना चाहिए था।"
मैंने अपनी दिनचर्या में रात में गर्म दूध के साथ 1 चम्मच देशी घी, त्रिफला चूर्ण और हल्का प्राणायाम Pranasya ने आंतरिक शांति और कब्ज में सुधार लाने में मदद की। अब रक्तस्राव नहीं होता, मल त्याग सहज हो गया और शरीर हल्का महसूस होता है।
📘 — जब दोष के अनुसार घी अपनाया जाए, तो वही औषधि बन जाता है।

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🛒 अभी खरीदें🟠मिथक बनाम सत्य: बाजार के भ्रम और आयुर्वेद की असली बातें
आज घी को लेकर बाजार में इतना भ्रम है कि कई लोग लाभ की चीज़ को हानि समझ बैठते हैं।
“घी मत खाओ, बवासीर बढ़ेगा!” – ये वाक्य अधिकतर बवासीर पीड़ित लोग सुनते हैं।
लेकिन सच क्या है? आइए, मिथकों का पर्दाफाश करें:
❌मिथक 1: “घी खाने से बवासीर बढ़ता है”
➡️सत्य:
- यह बात सभी प्रकार के घी पर लागू नहीं होती
- जर्सी, भैंस या डिब्बाबंद घी पचने में भारी होते हैं और शरीर में गरमी बढ़ाते हैं
- जबकि देशी गाय का शुद्ध बिलोना घी वात-पित्त को संतुलन में लाता है
❌मिथक 2: “सभी घी एक जैसे होते हैं”
➡️सत्य:
- जर्सी गाय का दूध 90% विदेशी नस्ल का है, जिसका घीपचने में भारी और गरम होता है
- भैंस का घी बहुत देर में पचता है और कब्ज बढ़ाता है
- डिब्बाबंद घी में रासायनिक तत्व, परिरक्षक (preservatives) और कई बार वनस्पति घी की मिलावट तक होती है
- इसके उलट देशी गाय का घी अग्निवर्धक, स्निग्ध और सूजननाशकहोता है
❌मिथक 3: “घी कभी भी, किसी भी मात्रा में ले सकते हैं”
➡️सत्य:
- आयुर्वेद में घी का सेवनसमय, मात्रा और व्यक्ति की प्रकृतिके अनुसार होता है
- रात को 1 चम्मच घी गर्म दूध में — सबसे उपयुक्त तरीका
- खाली पेट घी खाना सभी को नहीं सूट करता, विशेषकर कफ प्रधान व्यक्तियों को
👉यदि यह सब समझना हो कि कौन सा घी, कब और कैसे लें —
तो पहलेअपना त्रिदोष जांचेंऔर फिर आगे बढ़ें।
👉 यह भी पढ़ें-हर खाने के बाद पेट गुब्बारे जैसा फूलता था – अब पता चला दोष कहाँ था!
🟠घरेलू उपाय: देशी घी से जुड़ी 3 अचूक विधियाँ जो राहत दें

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सिर्फ सही घी के 3 प्रयोग ही बवासीर में 70-80% तक राहत दे सकते हैं — अगर उन्हेंनियमित, संयमपूर्वक और सही तरीके से किया जाए।
🟢 1. तांबे के पात्र में रखा घी + त्रिफला
- रात में तांबे के बर्तन में 1 चम्मच देशी घी रखें
- सुबह उसमें आधा चम्मच त्रिफला मिलाकर सेवन करें
- यह संयोजनवात और पित्त दोनों दोषों को शांत करता है और मल मार्ग को स्वच्छ करता है
🟢 2. गर्म दूध + 1 चम्मच देशी घी – सोने से पहले
- यह सबसे प्राचीन और असरदार तरीका है
- इससे न केवल कब्ज दूर होता है, बल्कि गुदा क्षेत्र की सूजन और दर्द में भी राहत मिलती है
- यह उपायपाचन अग्नि को मजबूत करता है और नींद बेहतर बनाता है
🟢 3. गुदा क्षेत्र पर बाह्य घी प्रयोग
- हल्के गर्म देशी घी को रूई या कॉटन की सहायता से प्रभावित भाग पर लगाएँ
- जलन, खुजली और सूजन में तत्काल राहत मिलती है
- विशेष रूप से जिनको चलने-फिरने में दर्द होता है, उनके लिए ये उपाय अत्यंत लाभकारी है
🌿विशेष सुझाव:
👉यदि आप शरीर को समग्र रूप से संतुलित करना चाहते हैं, तो घी के साथ प्राणस्य फॉर्मूला का उपयोग करें — जो पंचगव्य आधारित एक बुद्धि, इंद्रिय और पाचन को सक्रिय करने वाला सूत्र है।
🔚निष्कर्ष:
घी को दोषी मानना एक भ्रम है।
असल में, घी को सही समझें, स्रोत की शुद्धता पहचानें और आयुर्वेद की विधि से अपनाएं, तो यह बवासीर जैसे रोगों में सबसे प्राकृतिक और प्रभावी उपचार बन जाता है।
👉और सबसे पहले —
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👉 यह भी पढ़े- मैं हर समय थका-थका सा रहता था, जब तक Tridosh Tool ने लीवर की सच्चाई नहीं बताई
हर शरीर अलग होता है, और त्रिदोष असंतुलन की जड़ें भी अलग-अलग हो सकती हैं। अगर आप चाहते हैं:
- 1-on-1 कंसल्टेशन किसी विशेषज्ञ से
- 15 दिन का निजी खानपान और दिनचर्या प्लान
- आपके दोष के अनुसार जड़ी-बूटी और उपाय
🟢योग और प्राणायाम से उपाय: पंचगव्य आधारित जीवनशैली के साथ समाधान

आपने अपने दोष का विश्लेषण कर लिया है — अब समय है संतुलन की ओर पहला कदम बढ़ाने का।
पंचतत्त्व का त्रिदोष समाधान एक गहराई से तैयार मार्गदर्शिका है जिसमें शामिल हैं:
- त्रिदोष रिपोर्ट + घरेलू उपाय
- खानपान और योग दिनचर्या
- विशेषज्ञ परामर्श (यदि चुना जाए)
बवासीर केवल पेट की बीमारी नहीं है, यह आपकी गति, पाचन और तनाव से जुड़ी संपूर्ण समस्या है। योग और प्राणायाम इसमें अद्भुत परिणाम देते हैं, खासकर जब पंचगव्य आधारित दिनचर्या के साथ अपनाए जाएँ।
🧘♂️ लाभकारी आसन:
- पवनमुक्तासन – गैस, कब्ज और सूजन कम करता है
- मालासन (शौचासन) – गुदा क्षेत्र में रक्त प्रवाह बढ़ाता है
- वज्रासन – भोजन के बाद करने से पाचन सुधरता है
🌬️ प्राणायाम:
- अनुलोम-विलोम – त्रिदोष संतुलन में सहायक
- भ्रामरी – मानसिक तनाव कम कर मल त्याग को नियमित करता है
🐄पंचगव्य आधारित दिनचर्या:
- सुबह गाय के गोमूत्र अर्क का सेवन
- देशी घी से मालिश
- पंचगव्य से बनी धूप और नस्य का प्रयोग
👉यदि आप घर पर ही पंचगव्य-आधारित जीवनशैली अपनाना चाहते हैं, तो
गव्यशाला प्रशिक्षणआपके लिए सर्वोत्तम माध्यम है।
👉 यह भी पढ़े-लीवर डिटॉक्स से पहले ये 1 दोष जांचना अति आवश्यक है – अन्यथा नुकसान तय है!
❓अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
Q1. बवासीर में कौन सा घी नहीं खाना चाहिए?
❌जर्सी, भैंस या बाजार का पैक्ड घी।
Q2. गर्मियों में घी खाना नुकसान करता है?
✅नहीं, देशी घी सीमित मात्रा में हर ऋतु में लाभकारी है।
Q3. क्या बाहरी तौर पर भी घी लगाया जा सकता है?
✅हां, हल्का गर्म देशी घी गुदा पर लगाने से राहत मिलती है।
Q4. त्रिदोष कैसे समझें?
Q5. क्या यह योग व घरेलू उपाय से ठीक हो सकता है?
✅हां, नियमितता और दोषानुसार उपाय से संभव है।
Q6. घी से लाभ नहीं मिला तो?
Q7. क्या मार्गदर्शन व अपडेट्स मिल सकते हैं?
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🟣निष्कर्ष: बवासीर में घी खाना – समझदारी या लापरवाही?
बिना सोचे-समझे घी को पूरी तरह छोड़ देना बवासीर के उपचार में एक सामान्य लेकिन खतरनाक भूल है।
आयुर्वेद स्पष्ट कहता है —“सही पदार्थ, सही मात्रा और सही समय पर लिया जाए तो वही औषधि बनता है।”
👉यदि आप शुद्ध देशी गाय का घी अपनाते हैं —
और उसे सही मात्रा (1 चम्मच), सही समय (रात्रि में दूध के साथ या भोजन में सीमित रूप से) पर लेते हैं —
तो यह न केवल मल मार्ग को स्निग्ध करता है, बल्कि शरीर में वात दोष को शांत कर बवासीर जैसी व्याधियों को प्राकृतिक रूप से शांत करता है।
🛑लेकिन अगर आप मिलावटी, डिब्बाबंद, भैंस या जर्सी गाय का घी प्रयोग करते हैं —
तो यहशरीर में भारीपन, कब्ज और सूजनको बढ़ा सकता है।
➡️इसलिए निर्णय आपके हाथ में है:
घी को दोषी मानकर लापरवाही करें या समझदारी से अपनाकर उसे औषधि बनाएं।
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अब जब आपको बवासीर और घी के बीच का वास्तविक संबंध समझ आ गया है, तो अब समय है कदम उठाने का।
👉सिर्फ पढ़ना काफी नहीं, अब अपनी प्रकृति को समझना ज़रूरी है।
🔹Step 1: त्रिदोष जाँचें
👉यहाँ क्लिक करें – अपना त्रिदोष जांचें
तभी आप जान पाएँगे कि आपके शरीर में वात, पित्त या कफ में से कौन सा दोष असंतुलन में है।
🔹Step 2: जानें किस प्रकार का बवासीर है
रक्तस्रावी या व्रणयुक्त? अंदरूनी या बाहरी? दर्द प्रधान या खुजली प्रधान?
ये सभी बातें आपके उपचार की दिशा तय करेंगी।
🔹Step 3: व्यक्तिगत आयुर्वेदिक मार्गदर्शन लें
👉यहाँ परामर्श लें —
ताकि कोई भ्रम न रहे, और आपको विशेष सलाह मिल सके।
🔹Step 4: त्रिदोष समाधान पैकेज अपनाएँ
👉त्रिदोष समाधान पैकेज यहाँ देखें —
यह आपकी दोष प्रकृति के अनुसार संतुलन और समाधान में मदद करेगा।
🔹Step 5: पंचगव्य जीवनशैली अपनाएँ
यदि आप स्वस्थ परिवार और स्वदेशी जीवनशैली के मार्ग पर बढ़ना चाहते हैं,
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Panchtatvam ब्लॉग तथा गव्यशाला के संस्थापक लेखक, पंचगव्य प्रशिक्षक और देसी जीवनशैली के प्रचारक। 🕉️ 10 वर्षों का अनुभव | 👨🎓 10,000+ प्रशिक्षित विद्यार्थी
📖 मेरा उद्देश्य है कि हर परिवार त्रिदोष और पंचतत्व को समझे और रोग से पहले संतुलन अपनाए।